पूर्णागिरि मंदिर: शक्ति और श्रद्धा का प्रतीक

राकेश वर्मा 

पूर्णागिरि मंदिर: एक शक्तिपीठ 

उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित पूर्णागिरि मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत माला पर समुद्र तल से 5500 फुट की उंचाई पर स्थित है,

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव शंकर तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से मां सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने संसार को भयंकर प्रलय से बचाने के लिए मां सती के पार्थिव शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े कर दिए जो धरती के विभिन्न स्थानों में जा गिरे। जहां मां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माता सती की नाभि अंग चंपावत जिले के अन्नपूर्णा पर्वत पर गिरने से मां पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई।

चैत्र मास की नवरात्र में मां अन्नपूर्णा के दर्शन का विशेष महत्व है।

चैत्र नवरात्र से जेष्ठ मास की पूर्णिमा तक 90 दिन का मेला लगता है, जिसमें कुमाऊं, नेपाल और उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी तादाद में भाग लेने आते हैं।
वे मां के दर्शन कर पुण्य लाभ पाते हैं और मन्नत मांगते हैं। मां उनकी सभी मन्नतें पूरी करती है।

पूर्णागिरि मंदिर के सिद्ध बाबा के विषय में कई किवदंतियां हैं:

एक साधु बाबा ने मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश कर मां को चुनौती देने की ठानी तो मां ने क्रोध में साधु को नदी के पार फेंक दिया।
बाद में उस साधु ने मां पूर्णागिरि से क्षमा याचना की तो उन्होंने क्षमा कर दिया और अनेक देवी सिद्धियों से दीक्षित कर सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात किया।

आज भी यह सिद्ध बाबा का दिव्य स्थल पूर्णागिरि के भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि:

जो व्यक्ति मां पूर्णागिरि के दर्शन लाभ करेगा और उसके बाद सिद्ध बाबा के साधना स्थल के दर्शन करेगा तो उसकी मनोकामना तुरंत पूर्ण होगी।

इस मंदिर में मुंडन संस्कार का विशेष महत्व है:

मान्यता है कि इस स्थान पर मुंडन कराने पर बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है।
इसलिए इसकी विशेष मान्यता है।
तीर्थ यात्री इस स्थान पर मुंडन कराने लिए पहुंचते हैं।

आस्था चिर बांधना

मां पूर्णागिरि मंदिर की मान्यता है कि यहां पर भक्त लाल-पीले कपड़े को चीरकर आस्था और श्रद्धा के साथ मां के दरबार में बांधते हैं और इसे आस्था का चिरा कहा जाता है। वे मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मां पूर्णागिरि मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आते हैं। मां के दरबार में प्रसाद चढ़ा के मत्था टेकते हैं।