सुशील खत्री ( संपादकीय लेख )

नेपाल की राजनीति में बालेंद्र शाह का उदय एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण घटना है, खासकर भारत के लिए। काठमांडू के मेयर के रूप में अपनी सफलता के बाद, उनकी संभावित प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी ने दोनों देशों के बीच भविष्य के संबंधों पर बहस छेड़ दी है। बालेंद्र शाह का व्यक्तित्व और उनकी राजनीतिक शैली पारंपरिक राजनेताओं से काफी अलग है। यह भिन्नता भारत के लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है।
युवा ऊर्जा और नई संभावनाएँ
बालेंद्र शाह एक युवा, तकनीकी समझ रखने वाले और स्वतंत्र राजनेता हैं। उनकी पृष्ठभूमि सिविल इंजीनियरिंग और संगीत की है, जो उन्हें नेपाल के पारंपरिक राजनीतिक अभिजात वर्ग से अलग करती है। उन्होंने भ्रष्टाचार और सामाजिक मुद्दों के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई है, जिसने उन्हें युवाओं और शहरी मतदाताओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है। यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो यह नेपाल में एक नए युग की शुरुआत हो सकती है, जिसमें विकास, डिजिटल कनेक्टिविटी और आर्थिक सुधार को प्राथमिकता मिलेगी। यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर हो सकता है। एक स्थिर और प्रगतिशील नेपाल भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद है। भारत, नेपाल के साथ मिलकर डिजिटल इंडिया जैसी पहलों को आगे बढ़ा सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक संबंध और मजबूत होंगे।
राष्ट्रवाद की चुनौती
बालेंद्र शाह के मुखर राष्ट्रवादी बयान भारत के लिए कुछ चुनौतियाँ भी पेश करते हैं। उन्होंने हिंदी फिल्म ‘आदिपुरुष’ और भारतीय संसद में लगे ‘अखंड भारत’ के नक्शे पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उनके ये बयान उनकी राष्ट्रवादी सोच को दर्शाते हैं। यदि वे सत्ता में आते हैं, तो कालापानी, लिपुलेख और सुस्ता जैसे सीमा विवादों पर उनका रुख और भी आक्रामक हो सकता है। यह भारत-नेपाल संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। इसके अलावा, 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि की समीक्षा की उनकी संभावित मांग भी एक संवेदनशील मुद्दा है। यह संधि दोनों देशों के बीच “विशेष संबंध” का आधार रही है, और इसमें किसी भी तरह का बदलाव भारत के लिए कूटनीतिक रूप से एक जटिल स्थिति पैदा कर सकता है।
संतुलित कूटनीति की आवश्यकता
भारत को बालेंद्र शाह के संभावित नेतृत्व को सावधानी और रणनीतिक दृष्टिकोण से देखना होगा। उनके राष्ट्रवादी तेवर चीन के साथ बढ़ते नेपाल के संबंधों के संदर्भ में देखे जाने चाहिए। नेपाल हमेशा से भारत और चीन के बीच एक बफर स्टेट रहा है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि बालेंद्र शाह के संभावित नेतृत्व में नेपाल किसी एक देश के प्रति झुकाव न दिखाए, बल्कि दोनों देशों के बीच संतुलित कूटनीति अपनाए। भारत को अपनी “पड़ोसी पहले” नीति को और मजबूत करना होगा, जिसमें बातचीत और आपसी सम्मान को प्राथमिकता दी जाए।
निष्कर्ष के तौर पर, बालेंद्र शाह का नेपाल के प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए मिश्रित संभावनाएं लेकर आता है। एक ओर, यह स्थिर और प्रगतिशील नेतृत्व का अवसर है, वहीं दूसरी ओर, यह राष्ट्रवादी तेवर और कूटनीतिक जटिलताओं की चुनौती भी है। भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीति को अनुकूल बनाना होगा, ताकि वह इस युवा और महत्वाकांक्षी नेता के साथ सकारात्मक और उत्पादक संबंध स्थापित कर सके। यह समय है कि भारत अपनी नीतियों को सक्रिय और लचीला बनाए, ताकि वह नेपाल के साथ अपने सदियों पुराने संबंधों को नई दिशा दे सके।
“देवभूमि टुडे न्यूज”