पिथौरागढ़। 20 नवंबर, 2014 को नैनीताल जिले के काठगोदाम में ‘नन्ही कली’ के साथ हुई भयावह घटना के बाद, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो अदालत से दोषी ठहराए गए अभियुक्त अख्तर अली उर्फ मकसूद को बरी कर दिया है, जिससे सीमांत क्षेत्र की जनता में भारी आक्रोश है। जनता ने अपनी बेटी को न्याय न मिलने पर गहरा दुख और गुस्सा व्यक्त किया है।
इस फैसले के विरोध में, पिथौरागढ़ के विभिन्न युवा संगठनों ने प्रदेश सरकार की कड़ी निंदा करते हुए, सिमलगैर बाजार में मौन विरोध प्रदर्शन किया।

विरोध प्रदर्शन में शामिल संगठन और युवा
सीमांत यूथ मोर्चा, उत्तराखंड छात्र मोर्चा, और नगर यूथ कमेटी के युवाओं ने इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने साफ तौर पर कहा कि जब तक ‘नन्ही कली’ को न्याय नहीं मिलेगा, वे चुप नहीं बैठेंगे। उन्होंने राज्य सरकार से इस मामले में निर्णायक कदम उठाने की अपील की।
मौन विरोध में नगर निगम पार्षद सुशील खत्री, सीयूमो के जिला अध्यक्ष जनार्दन पंत, उत्तराखंड छात्र मोर्चा के संयोजक योगेश खर्कवाल, नगर यूथ कमेटी के संयोजक राहुल खत्री, और युवा नेता ध्रुव धामी, बहादुर सिंह, पप्पू बिष्ट, और नीरज कुमार उपस्थित रहे।
क्या था मामला
20 नवंबर 2014 को पिथौरागढ़ की रहने वाली 6 साल की नन्ही कली अपने परिवार के साथ हल्द्वानी के शीशमहल स्थित रामलीला ग्राउंड में एक शादी समारोह में आई थी। समारोह के दौरान, वह अचानक लापता हो गई थी।
बच्ची का शव बरामद
बच्ची के लापता होने के छह दिन बाद, उसका शव गौला नदी से मिला।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह पुष्टि हुई कि बच्ची के साथ दुष्कर्म (गैंगरेप) किया गया था और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई थी।
इस घटना से लोगों में भारी गुस्सा भड़क गया, और उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। उस समय के मुख्यमंत्री हरीश रावत के काफिले पर भी गुस्साई भीड़ ने हमला कर दिया था।
दोषियों की गिरफ्तारी और सजा
पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए कई राज्यों में तलाशी अभियान चलाया।
घटना के आठ दिन बाद, पुलिस ने मुख्य आरोपी अख्तर अली को चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया। उसकी निशानदेही पर दो और आरोपियों प्रेमपाल और जूनियर मसीह को भी पकड़ा गया।
मार्च 2016 में, हल्द्वानी की एडीजे स्पेशल कोर्ट ने अख्तर अली को गैंगरेप और हत्या का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। प्रेमपाल को पांच साल की सजा दी गई।
अक्टूबर 2019 में, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा।