पिथौरागढ़। सीमांत क्षेत्रों में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने और स्थानीय आर्थिकी को मजबूती देने के उद्देश्य से चलाए जा रहे महत्वाकांक्षी ‘प्रोजेक्ट-21’ के तहत मुख्य विकास अधिकारी डॉ. दीपक सैनी ने एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने अब तक दो चरणों में 16 अंतरराष्ट्रीय और 5 आंतरिक दर्रों की दुर्गम यात्रा सफलतापूर्वक पूरी कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, जिसने 1905 में लांग स्टाफ द्वारा बनाए गए 11 दर्रों के पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया है।

दूसरे चरण की साहसिक यात्रा: 250 किमी की पदयात्रा, फतह किए छह दर्रे
द्वितीय चरण की यात्रा (24 अगस्त – 18 सितंबर ) डॉ. सैनी के साहस और संकल्प की कहानी बयां करती है। इस दौरान उन्होंने तिब्बत (चीन) सीमा से जुड़े पिथौरागढ़ के छह अंतरराष्ट्रीय दर्रों को पार किया।
जौहार घाटी में: उंटा धूरा, जयंती धुरा, और किंगरी बिगरी दर्रों की चढ़ाई की।
व्यास घाटी में: लिपुलेख, ओल्ड लिपुलेख, और लंपिया धुरा, मंगशा धुरा, नुवे धुरा, लुवे धुरा की चढ़ाई की।
अन्य: आदि कैलाश के निकट स्थित सिन्ला पास को भी फतह कर दारमा घाटी में प्रवेश किया।
इस साहसिक मिशन में उन्होंने लगभग 250 किलोमीटर की पदयात्रा की और औसतन 5500–5700 मीटर की अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित दर्रों को पार किया। इस दौरान उन्होंने -3 से -6 डिग्री सेल्सियस के जमा देने वाले तापमान, बर्फीले तूफानों और भूस्खलन जैसी जानलेवा चुनौतियों का सामना किया। यह सफलता भारतीय सेना और आईटीबीपी के उत्कृष्ट समन्वय और सहयोग से ही संभव हो पाई।
मिशन का उद्देश्य: पर्यटन को बढ़ावा, आर्थिकी को सशक्त करना
डॉ. सैनी ने बताया कि उत्तराखंड सरकार और पर्यटन विभाग के सहयोग से चल रहे इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य महज साहसिक चढ़ाई करना नहीं है, बल्कि यह सीमांत क्षेत्रों के लिए एक गेम चेंजर साबित होगा। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
👉 साहसिक पर्यटन को बढ़ावा: उत्तराखंड के ‘वाइब्रेंट ग्रामों’ में नए पर्यटन स्थलों की पहचान करना।
👉 आजीविका सशक्तिकरण: स्थानीय ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था व आजीविका को मजबूत करना।
👉 सीमांत समस्याओं को समझना: गांवों का भ्रमण कर ग्रामीणों से संवाद स्थापित करना और उनकी समस्याओं को करीब से जानना।
👉 मजबूत समन्वय: सेना, आईटीबीपी और जिला प्रशासन के मध्य समन्वय को और सुदृढ़ बनाना।
दूसरे चरण में, डॉ. सैनी ने जौहार और व्यास घाटी के लास्पा, रिलकोट, बुर्फू, मार्तोली, बिलज्यू, मिलम जैसे अंतिम गांवों का भ्रमण कर न केवल ग्रामीणों से संवाद किया, बल्कि नंदाष्टमी जैसे स्थानीय मेलों में भी सहभागिता कर उनकी संस्कृति को आत्मसात किया।
भविष्य की योजनाएं: परी ताल बनेगा नया पर्यटन केंद्र, गढ़वाल से जुड़ेगा पिथौरागढ़
डॉ. सैनी ने आगामी योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस प्रोजेक्ट के अनुभव के आधार पर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे:
👉 ‘परी ताल’ (ऊंटा धुरा, 5200 मी.) को एक नए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसे छोटे-छोटे बैचों में पर्यटकों के लिए खोलकर स्थानीय आर्थिकी को मजबूत करने की योजना है।
👉 सड़क संपर्क: लपथल से टोपीढूंगा और मिलम से टोपी दूँगा सड़क का निर्माण कार्य तेजी से जारी है। इन सड़कों के पूरा होने पर पिथौरागढ़ सीधे गढ़वाल क्षेत्र से जुड़ जाएगा, जिससे बद्रीनाथ धाम और चारधाम यात्रा श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत सुगम हो जाएगी।
👉 वाइब्रेंट विलेज योजना: सीमांत गांवों में आजीविका के नए साधन विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
रिकॉर्ड तोड़ने का सफर जारी: अब त्रिकोणीय सीमा की बारी
डॉ. सैनी ने स्पष्ट किया कि 1905 के लांग स्टाफ के रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद भी उनका सफर जारी रहेगा। उन्होंने घोषणा की है कि अक्टूबर 2025 में वे त्रिकोणीय सीमा (भारत-तिब्बत-नेपाल) पर स्थित अंतरराष्ट्रीय दर्रे को पार करेंगे। ‘प्रोजेक्ट-21’ के अंतिम (तीसरे) चरण में वे उत्तरकाशी जिले के चार अंतरराष्ट्रीय दर्रों को पार कर इस महाअभियान को पूर्ण करेंगे।
उन्होंने इस ऐतिहासिक सफलता के लिए उत्तराखंड सरकार, पर्यटन विभाग, कुमाऊँ कमिश्नर दीपक रावत, जिलाधिकारी पिथौरागढ़ विनोद गोस्वामी, भारतीय सेना की 119 ब्रिगेड के कमांडर गौतम पठानिया, आईटीबीपी के आईजी संजय गुंज्याल सहित सभी सहयोगियों का आभार व्यक्त किया।