गंगोलीहाट। देवभूमि उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र और अलौकिक गुफा मंदिर पाताल भुवनेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा यानी 5 नवंबर को एक अद्वितीय और दशकों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। इस दिन, गुफा के गर्भ में विराजमान शिव शक्ति को नए धान के चावल का महाभोग अर्पित किया जाएगा। यह भोग उत्तराखंड की लोक आस्था, प्रकृति के प्रति आभार और पौराणिक मान्यताओं के संगम को दर्शाता है।
अकाल खत्म होने पर शुरू हुई थी भोग की परंपरा
मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नीलम भंडारी ने इस पवित्र परंपरा के पीछे के पौराणिक आधार की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बहुत वर्ष पूर्व जब क्षेत्र में भीषण अकाल और सूखा पड़ा था, तब मल्लागर्खा क्षेत्र के खाती उपजाति के लोगों ने एक संकल्प लिया था।
मान्यता: “खाती उपजाति के लोगों ने प्रण लिया था कि यदि वर्षा होती है और अकाल समाप्त होता है, तो उस समय जो भी पहली फसल होगी, उसका भोग पाताल भुवनेश्वर गुफा के शिव शक्ति को लगाया जाएगा।”

जब मन्नत पूरी हुई और वर्षा हुई, तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन नए धान के चावल का भोग लगाने की यह पवित्र प्रथा चली आ रही है, जो आज भी अक्षुण्ण जारी है।
महाभोग और सामूहिक भोजन का आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर मंदिर कमेटी द्वारा विशेष रूप से नए चावल का महाभोग तैयार किया जाता है। इस दिन स्थानीय लोगों के साथ-साथ मल्लागर्खा के खाती उपजाति के लोगों को भी सामूहिक भोजन (भंडारा) कराया जाता है।
विशेष सहयोग: इस धार्मिक अनुष्ठान को सफल बनाने में स्थानीय समुदायों की विभिन्न जातियों— भंडारी, रावल, गुरौ, देऊपा, दसौनी, लोहार, भूल— द्वारा विशेष सहयोग किया जाता है, जो सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करता है।
मंदिर कमेटी के महासचिव जगत सिंह रावल ने सभी श्रद्धालुओं और भक्तों से विनम्र अनुरोध किया है कि वे 5 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा के दिन पाताल भुवनेश्वर पहुंचकर इस महाभोग का प्रसाद ग्रहण करें।
